आ अब लौट चले || जब स्मृति में कौंधता है अपना गाँव , अपने लोग ..||
सब कुछ मिला है शहर में | अच्छी शिक्षा , अच्छा खाना , अच्छा पहनावा और बेहतर जिंदगी , पर साथ ही है कुछ छुट जाने की कसक भी | अपनी मिटटी , अपनी जुडो से दूर होने की यह कसक और टीसती है , जब स्मृति में कौंधता है अपना गाँव , अपने लोग ...........
बारिश में भर जाते है नहर , पोखर, तालाब | इनमे एक साथ नहाते हुए बच्चे , बकरिया और भैस ,धुल में सने पैर लिए चौराहे या बैलगाड़ी पर सुस्ताते ग्रामीण ........ खेतो में उपलों पर थापी रोटी के साथ प्याज खाते लोग ....