हमारे अन्नदाता पाई पाई और दाने – दाने का मोहताज़ है .......

हमारे अन्नदाता पाई पाई और दाने – दाने का मोहताज़ है | किसी के पास जमीं नहीं है तो किसी के सर पर छत नहीं मयस्सर है | महिलाये आज भी दोयम जिंदगी जीने को अभिशप्त है | कुल मिलकर ग्रामीण भारत की तस्वीर बहुत भयावह है | ऐसे में सवाल यह उठता है की आखिर इस स्तिथि की वजह क्या रहि ? क्या शहरों के गांवो के बिच की खाई इस दौरान निर्बाध रूप से चौड़ी होती गई ? क्या हमारी नीतिया, योजनाये और राजनितिक इच्छा शक्ति किसान और खेती का भला नहीं कर पाए जिसके वे हकदार थे |       

24.39 करोड़  – देश के कुल परिवारों के संख्या
17.91 करोड़ – गांवो में रहने वाले परिवारों की संख्या

 नीतियों का झुकाव -
किसी भी अर्थव्यवस्था में ग्रामीण और शहरी क्षेत्र आर्थिक , वित्तीय  और सामाजिक रूप से आपस में गुंथे होते है | आदर्श स्तिथि तो यह होती है कि संसाधनों और सेवाओ का दोनों क्षेत्रो में संतुलन स्थापित होना चाहिए | दुर्भाग्य से भारत और चीन जैसे विकासशील देशो में यह विडंबना दिखती है | इन देशो में तेज़ गति से उद्योगीकरण में अपने ग्रामीण क्षेत्र के अतिरिक्त श्रम और संसाधनों को शहरी क्षेत्र में लगा दिया | लिहाजा शहरी क्षेत्र के इस असंगत विकाश का ग्रामीण क्षेत्र को बड़ा खामियाजा चुकाना पड़ रहा है .. |